fbpx

एकादशी क्या है?

एकादशी शब्द संस्कृत भाषा से लिया गया है, जिसका अर्थ ग्यारह होता है। एकादशी को हिंदू संस्कृति में एक अत्यंत शुभ दिन माना जाता है। एकादशी मास में दो बार आती है, कृष्ण पक्ष में एवं शुक्ल पक्ष में। पूर्णिमा से अमावस्या तक की अवधि के 15 दिनों को कृष्णपक्ष एवं अमावस्या से पूर्णिमा तक की अवधि के 15 दिनों को शुक्लपक्ष कहा जाता है। कृष्ण पक्ष एवं शुक्ल पक्ष का ग्यारहवा दिन एकादशी होता है। आध्यात्मिक जीवन में प्रगति के लिए एकादशी के व्रत को महत्वपूर्ण माना जाता है।

एकादशी का महत्व (Importance of Ekadashi)

पुराणों के अनुसार, भगवान विष्णु ने एक देवी की रचना की थी जिनको एकादशी नाम दिया गया। एकादशी की रचना एक दानव मूरा को पराजित करने के लिए की गयी थी। एकादशी के द्वारा उस दानव की मृत्यु के उपरांत भगवान विष्णु ने इस कार्य से प्रसन्न होकर एकादशी को वरदान दिया कि जो भी भक्त एकादशी व्रत का पालन करेंगे तो वह सभी पापों और अशुद्धियों से मुक्त होने में सफल होंगे एवं निश्चित रूप से मोक्ष प्राप्त करेंगे।

एकादशी के व्रत का वास्तविक उद्देश्य सर्वोच्च भगवान श्रीकृष्ण के प्रति आस्था और प्रेम को बढ़ाना है। एकादशी का व्रत भगवान श्रीकृष्ण को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है जो एकादशी के दिन उपवास करने वाले व्यक्तियों के पापों का उद्धार करते हैं। एकादशी के व्रत से धार्मिक मनोवृत्ति और आध्यात्मिकता का विकास होता है। सभी व्रतों में से एकादशी भगवान श्रीकृष्ण को सबसे अधिक प्रसन्न करने वाली है। एकादशी का व्रत करके और हरे कृष्ण मंत्र का जप करके और इसके नियमित पालन से भक्तगण कृष्णभावनामृत में उन्नति करते हैं।

एकादशी व्रत पालन का अर्थ अन्न खाने से परहेज करने से कहीं अधिक है। एकादशी व्रत का पालन करने की पारंपरिक प्रणाली उपवास करना और रात्रि जागरण है और भगवान की महिमा का जप करना है। सभी भक्तों को कृष्णभावनामृत में आगे बढ़ने के लिए एकादशी का लाभ उठाने का प्रयास करना चाहिए। ब्रह्म-वैवर्त पुराण के अनुसार जो भक्त एकादशी के दिन उपवास करते हैं, वह सभी प्रकार के पापों से मुक्त हो जाते है और पवित्र जीवन में उन्नति करते है। मूल सिद्धांत केवल उपवास करना नहीं है, बल्कि भगवान श्रीकृष्ण के प्रति अपनी आस्था और प्रेम को बढ़ाना है। श्रील प्रभुपाद के कथनानुसार भक्त पर्याप्त समय के साथ एकादशी पर पच्चीस माला या अधिक बार जप करें। सिर्फ पच्चीस माला ही नहीं, जितना हो सके जप करना चाहिए। असली एकादशी का अर्थ है उपवास और जप। जब कोई उपवास करता है, तो हरे कृष्ण मंत्र का जप सरल हो जाता है। अतः एकादशी के दिन जितना ​​संभव हो अन्य व्यवसाय को स्थगित करें, जब तक कि कोई आवश्यक कार्य न हो।

एकादशी के फायदे

एकादशी व्रत के मुख्य फायदे निम्नलिखित है।

  1. एकादशी के दिन उपवास करना किसी भी तीर्थ स्थान पर जाने के बराबर है। इस व्रत का पुण्य प्रसिद्ध अश्वमेध यज्ञ के समान माना जाता है।
  2. आध्यात्मिक जीवन में प्रगति होती है।
  3. यह मन, शरीर और आत्मा को शुद्ध करता है।
  4. इन्द्रियों पर अधिक नियंत्रण और धैर्य प्राप्त होता है।
  5. आत्म-अनुशासन और आत्म-नियंत्रण प्राप्त होता है।
  6. शरीर के विषाक्त पदार्थो से मुक्ति मिलती है। शरीर हल्का एवं ऊर्जावान महसूस करता है।
  7. मानसिक ऊर्जा सही दिशा में निर्देशित होती है।
  8. सुखद जीवन की प्राप्ति होती है।
  9. सुख समृद्धि एवं शांति प्राप्त होती है।
  10. मोह माया के बंधनो से मुक्ति मिलती है।
  11. समस्त पापों से मुक्ति मिलती है।
  12. एकादशी का व्रत केवल शरीर और आत्मा को शुद्ध करने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि चयापचय (Metabolism) और अन्य जैविक क्रियाओं के वैज्ञानिक अनुप्रयोग में इसकी प्रासंगिकता पायी जाती है।

एकादशी व्रत कौन रख सकते हैं 

एकादशी व्रत का पालन किसी भी आयु के व्यक्ति कर सकते हैं। जैसे ब्रह्मचारी, गृहस्थ, वानप्रस्थ, सन्यासी, विधवा, विधुर आदि। बाल्यावस्था से वृद्धावस्था तक कोई भी भक्त इस व्रत को रख सकता है। केवल दुर्लभ मामलों में, यदि आप शारीरिक रूप से उपवास करने में असमर्थ हैं तो यह व्रत मत रखिये।

एकादशी व्रत कैसे करते हैं

  1. एकादशी का दिन भक्ति को प्रगाढ़ करने के लिए सुअवसर होता है।
  2. एकादशी के दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठ कर स्नान करना चाहिए एवं भगवान श्रीकृष्ण की पूजा अर्चना करनी चाहिए।
  3. भगवान श्रीकृष्ण तथा उनके विभिन्न अवतारों की लीलाओं का स्मरण करना चाहिए।
  4. जितनी बार संभव हो हरे कृष्ण महामंत्र का जाप करें।
  5. भगवदगीता और श्रीमद्भागवतम जैसे शास्त्रों को पढ़ना।
  6. भगवान विष्णु / श्रीकृष्ण के मंदिर में जाना चाहिए।
  7. इस व्रत को रखने वालों को हिंसा, छलकपट और झूठ से दूर रहना चाहिए और परोपकारी कार्यों में शामिल होना चाहिए।
  8. भक्त को अधिक से अधिक समय आध्यात्मिक गतिविधियों के लिए उपयोग करना चाहिए। इस दिन कीर्तन एवं रात्रि जागरण का भी बहुत महत्व है।

एकादशी व्रत में क्या खाएं क्या न खाएं

एकादशी का व्रत खाद्य पदार्थों के नियमो के साथ किया जाता है जिनका पालन करना अति आवश्यक है।

क्या खाना चाहिए?

एकादशी के व्रत में निम्नलिखित खाद्य पदार्थ खाये जा सकते हैं।

  1. आलू
  2. कुट्टू का आटा से बने व्यंजन
  3. सिंघाड़े का आटा से बने व्यंजन
  4. राजगिरा का आटा से बने व्यंजन
  5. दूध एवं दूध से बने हुए व्यंजन
  6. ताजे फल एवं घर में निकाला हुआ फलो का रस
  7. सूखे मेवे
  8. सब्जियां जैसे कद्दू/सीताफल, लौकी/घीया, खीरा
  9. काली मिर्च और सेंधा नमक
  10. शकरकंद
  11. जैतून
  12. नारियल
  13. नारियल का तेल, जैतून का तेल, मूंगफली का तेल

क्या नहीं खाना चाहिए?

एकादशी के व्रत में निम्नलिखित खाद्य पदार्थो का सेवन वर्जित है

  1. चावलएकादशी के व्रत में चावल का सेवन पूर्णतः वर्जित है। इस दिन चावल का सेवन करने से पुण्यों का विनाश हो जाता है।
  2. मांस, मदिरा, मछली एवं अण्डा
  3. प्याज एवं लहसुन
  4. सभी प्रकार के अनाज जैसे गेहूँ, ज्वार, बाजरा,जौ, जई, रागी आदि
  5. सभी प्रकार की दालें जैसे मूँग, मसूर, चना, अरहर, उड़द आदि
  6. फलियां/बीन्स एवं पत्तेदार सब्जियां
  7. सब्जियां जैसे फूलगोभी/बंदगोभी, बैंगन, मटर, गाजर, शलगम, मूली, ब्रोकली, शिमला मिर्च, भिंडी, करेला, गाजर, टमाटर
  8. मैदा से बने हुए व्यंजन
  9. शहद
  10. बेकिंग पाउडर
  11. बेकिंग सोडा
  12. कस्टर्ड
  13. कुछ मसाले जैसे हींग, जायफल, सरसो, सौंफ, मेथी, कलौंजी, अजवाइन,लौंग, इलायची
  14. बाजार के पैक फलो का रस
  15. दलिया
  16. पास्ता
  17. मैकरोनी
  18. डोसा/इडली

एकादशी व्रत का पारण

एकादशी व्रत का पारण किये बिना इस व्रत को पूरा नहीं माना जाता। एकादशी का व्रत रखने के बाद इस व्रत को खोलने की विधि को पारण कहा जाता है। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना अति आवश्यक है। उसी समय अवधि में ही पारण करना होता है। द्वादशी तिथि के भीतर पारण न करना पाप करने के समान होता है। पारण का समय जानने के लिए इस्कॉन द्वारा उपयोग किए जाने वाले वैष्णव कैलेंडर का उपयोग किया जाना चाहिए, क्योंकि एकादशी और महत्वपूर्ण त्योहारों के लिए निर्धारित तिथियां प्रत्येक संप्रदाय में पंडितों द्वारा उपयोग की जाने वाली गणना की प्रणाली के अनुसार भिन्न हो सकती हैं।

द्वादशी के दिन स्नान के बाद भगवान कृष्ण की पूजा करे एवं उसके बाद भोजन ग्रहण करे। पारण का भोजन सात्विक होना चाहिए। जिस वस्तु के त्याग से आपने एकादशी व्रत किया है, उसी वस्तु के सेवन के साथ ही व्रत खोला जाता है। जैसे यदि आपने निर्जला व्रत किया है तो पारण जल ग्रहण करके किया जा सकता है। यदि आपने अन्न का त्याग करके व्रत किया है तो अन्न के सेवन से पारण किया जा सकता है। 

नोट : द्वादशी के दिन तुलसी को नहीं तोड़ना चाहिए

Your Smallest act of Charity can make a difference and bring smiles to Needy Faces.

4.3 22 votes
Article Rating
36
0
Would love your thoughts, please comment.x
()
x