गीता जयंती (Gita Jayanti) वैदिक संस्कृति के पवित्र ग्रंथ श्रीमद भगवद-गीता की उत्पत्ति का प्रतीक है। वैदिक शास्त्रों के अनुसार, श्रीमद भगवद-गीता की उत्पत्ति हरियाणा के कुरुक्षेत्र में मार्गशीर्ष माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी को हुई थी। महाभारत के युद्ध के दौरान, भगवान श्रीकृष्ण ने भगवद गीता का वर्णन करके अर्जुन को सही दिशा में निर्देशित किया जो कि अपार ज्ञान का स्रोत है। कुरुक्षेत्र के युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कर्म और धर्म का महत्व समझाया। भगवद गीता में अठारह अध्याय और 700 श्लोक हैं। जो भी भक्त इस दिन व्रत का पालन करते है एवं भगवद गीता का पाठ करते हैं, उन्हें सर्वोच्च भगवान श्रीकृष्ण के चरणों की प्राप्ति होती है।
गीता कथा
श्रीमद भगवद-गीता का आरम्भ महाभारत में कुरुक्षेत्र में युद्ध से पहले होता है। सुलह के कई प्रयास विफल होने के बाद, युद्ध अवश्यंभावी था। अपने भक्त एवं घनिष्ठ मित्र अर्जुन के लिए शुद्ध करुणा एवं सच्चे प्रेम से, भगवान श्रीकृष्ण ने युद्ध के दौरान उनका सारथी बनने का निर्णय लिया। अंततः युद्ध का दिन आ ही गया, और सेनाएं युद्ध के मैदान में आमने-सामने आ गईं। जैसे ही युद्ध शुरू होने वाला था, अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से रथ को युद्ध के मैदान के बीच में, सेनाओं के बीच, विरोधी ताकतों को और अधिक निकट से देखने के लिए चलाने के लिए कहा।
अपने पितामह, भीष्म, जिन्होंने उन्हें बचपन से ही बड़े प्यार से पाला था, और उनके शिक्षक, द्रोणाचार्य, जिन्होंने उन्हें सबसे बड़ा धनुर्धर बनने के लिए प्रशिक्षित किया था, को देखकर अर्जुन का हृदय पिघल गया। उनका शरीर कांपने लगा एवं मन भ्रमित हो गया। वह क्षत्रिय (योद्धा) के रूप में अपना कर्तव्य पालन करने में असमर्थ हो गए। वह इस विचार से कमजोर और बीमार अनुभव कर रहे थे कि उन्हें इस युद्ध में अपने परिजनों, मित्रों एवं सम्मानित व्यक्तियों का वध करना होगा। निराश होकर उन्होंने श्रीकृष्ण को अपनी दुविधा के बारे में अवगत कराया और उनसे परामर्श माँगा। तब भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को भगवद गीता के रूप में वैदिक ज्ञान का सार प्रदान किया और उन्हें जीवन के अंतिम लक्ष्य के बारे में बताया।
श्रीमद भगवद-गीता माहात्म्य
भगवद-गीता का शाब्दिक अर्थ है “सर्वोच्च भगवान का गीत”। यह संसार में सबसे व्यापक रूप से ज्ञात वैदिक साहित्य है।
निम्नलिखित श्लोकों से हम श्रीमद भगवद गीता का महत्व जान सकते हैं:
गीता शास्त्रं इदं पुण्यम्, यह पथे प्रयातः पूमण
विश्नोह पदम अवपनोती, भय–शोकदि–वर्जितः।
जो एक नियमित मन के साथ, भक्ति के साथ इस भगवद-गीता शास्त्र का पाठ करता है, जो सभी गुणों का दाता है, वह वैकुंठ जैसे पवित्र निवास को प्राप्त करेगा, भगवान विष्णु का निवास, जो भय एवं विलाप पर आधारित सांसारिक गुणों से सदैव मुक्त होता है। (गीता माहात्म्य श्लोक 1)
गीता माहात्म्य में आगे वर्णित है,
सर्वोपनिषदो गावो, दोग्धा गोपाल–नंदना:
पार्थो वत्स सु–धीर भोक्ता, दुग्धाम गीतामृतं महतो
सभी उपनिषद गाय की तरह हैं, और गाय का दूध देने वाले भगवान श्रीकृष्ण हैं, जो नंद के पुत्र हैं। अर्जुन बछड़ा है, गीता का सुंदर अमृत दूध है, और उत्तम आस्तिक बुद्धि के भाग्यशाली भक्त उस दूध को पीने वाले और भोक्ता हैं। (गीता माहात्म्य श्लोक 6)
गीता जयंती (Gita Jayanti) के अवसर पर प्रति वर्ष, भगवान श्रीकृष्ण के भक्त इकट्ठा होते हैं और भगवद गीता के 700 श्लोकों का पाठ करते हैं। इस अवसर पर इस्कॉन के संस्थापक आचार्य परम पूज्य श्रील प्रभुपाद द्वारा संकलित भगवद गीता- यथारूप की प्रतियों का वितरण किया जाता हैं। गीता पुस्तक मैराथन का आयोजन होता है और भक्तजन समाज में भगवद गीता वितरित करने में भाग लेते हैं।
Your Smallest act of Charity can make a difference and bring smiles to Needy Faces.
DONATE 50 MEALS
₹ 1,000
DONATE 250 MEALS
₹ 5,000
DONATE 100 MEALS
₹ 2,000
DONATE 500 MEALS
₹ 10,000
GENERAL DONATION
#Amount of your choice